सूरज तो अभी छिपा नहीं, अभी कहाँ जाओगे?
और अब तो मय भी इतनी महंगी है, रोज़ कैसे पिलाओगे?
तुम्ही हो दोस्तों जो मुफ्त की पिलाकर भी, लड़खडाने तक साथ देते हो,
और एक वो है जो शक करके पूछते है, मुझे भूल तो नहीं जाओगे?
वक़्त बदल गया ; उसे तो बदलना था,
पर सूरज क्यूँ छिप गया बादलों में, उसे तो ढलना था...
फिर रात हुई और चाँद तारों के बिना ही निकला,
क्या तुझे नहीं लगता, बिछड़ने से पहले भी एक बार मिलना था..
सादर : अनन्त भारद्वाज
हम जितने छोटे होते है, उतने अच्छे होते है..
जैसे घर में खेलते हुये नादान बच्चे होते है..
अब जब बड़े हो रहे है, तो सब अच्छा करो,
ये बात पक्की है कि दूसरे जनम होते है..
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