Thursday, April 12, 2012

“ कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ? ”




कविता जो भ्रष्टाचार , विभाजन, आरक्षण, गरीबी, गन्दी राजनीति, गुलामी के आसार, सीमा- युद्ध, अभिवावकों का अनादर, बेरोजगारी जैसे देश में व्याप्त तमाम आयामों को जोड़कर मैंने २ वर्ष पूर्व लिखी ..

दिल की संवेदनाओ  को मैं मार कैसे दूं
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
पथ भ्रष्ट हो गया, पथिक भ्रष्ट  हो गया,
गाँधी और सुभाष का ये राष्ट्र भ्रष्ट  हो गया,
चंद रुपयों को भाई भाई भ्रष्ट  हो गया,
जगदगुरु- सा मेरा देश भ्रष्ट  हो गया..
राम राज्य लाने वाली सरकार कैसे दूं?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

भ्रष्टाचार की खातिर शत्रु सीमा से सट जाते हैं  ,
बुनियादी आरोपों से अब संसद तक पट जाते हैं ,
मानचित्र में हर साल राज्य बट जाते हैं,
भारत माता के कोमल अंग कट जाते हैं..
इस अखंड राष्ट्र को आकर कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

आरक्षण  विधान कर नेता यूँ सो जाते हैं,
मेहनतकश बच्चे खून के आंसू रो जाते हैं,
कर्म करते -करते कई युग हो जाते हैं,
कलयुग  के कर्मयोगी पन्नो में खो जाते हैं,
कृष्ण ने जो दे दिया वो सार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

माँ अपने बच्चे को ममता से सींच देती है,
मंहगाई  की मार गर्दनें खीच देती है,
रोटी के अभाव में माँ बच्चा फेंक देती है,
फिर भी पेट ना भरा तो जिस्म बेच देती है,
इस पापी पेट को आहार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

एक लाठी वाला पूरी दुनिया  पे छा गया,
दूजा  सत्ताधारी तो चारा तक खा  गया,
चम्बल के डाकुओं को संसद  भी भा  गया,
शायद जीत जायेगा लो चुनाव   गया,
ऐसे भ्रष्ट नेता को विजय हार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

तिब्बत चला गया अब कश्मीर चला जायेगा ,
यदुवंशी  रजवाड़ों  में जब बाबर घुस  आएगा ,
देश का  सिंघासन चंद सिक्कों में बँट जायेगा ,
तब बोलो भारतवालो तुम  पर क्या रह जायेगा  ?
आती  हुई  गुलामी  का समाचार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

सीमा  के खतों  में हिंसा तांडव करती  है,
सूनी  राखी  देख कर बहिन रोज़ डरती  है,
नयी दुल्हन सेज पर रोज़ मरती है,
और बूढी  माँ की आँखें रोज़ जल भरती है,
माँ को बेटे की लाश का उपहार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

आज के भी दशरथ चार पुत्रों को पढ़ाते है,
फिर भी चार पुत्रों पर वो बोझ बन जाते है,
कलयुग में राम कैसे मर्यादा निभाते है ?
राम घर मौज ले और दशरथ  वन  जाते है,
ऐसे  राम को दीपों की कतार  कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

मानव अंगों का व्यापार यहाँ खिलता  है,
शहीदों के ताबूतों  में कमीशन भी मिलता है,
बेरोज़गारों  का झुण्ड चौराहों  पे दिखता है,
"फील गुडकहने से सत्य नहीं छिपता  है,
देश की प्रगति  को रफ़्तार  कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Copyright © 2012;

इस वेबसाइट पर लिखित समस्त सामग्री अनन्त भारद्वाज द्वारा कॉपीराइट है| बिना लिखित अनुमति के किसी भी लेख का पूर्ण या आंशिक रूप से प्रयोग वर्जित है|