इस गीत को बांचने से पहले नयी पीढ़ी को बता दिया जाना चाहिए कि चातक भारत एवं अन्य देशों में पाया जाने वाला एक विशेष प्रकार का पक्षी होता है जो अपनी कुल-मर्यादा को निभाते हुए प्यासा मर जाना पसंद करता है पर स्वांति नक्षत्र में बारिश की पहली बूँद ही ग्रहण करता है |
तुम स्वांति नक्षत्र की बूँद बनी,
मैं चातक तुम्हारा बन ना सका |
मोर आए ‘हां’ मन के, विचरने लगे |
प्रेम-सागर में हम-तुम, उतरने लगे |
प्रेम-सागर में हम-तुम, उतरने लगे |
सूने आँगन में तुम, दूब बनके उगी,
मैं सावन तुम्हारा, बन ना सका |
तुम स्वांति नक्षत्र........................
मैं चातक तुम्हारा........................
पावन मूरत थी वो, दूर तक नाम था |
प्रेमियों के लिए, बस वही धाम था |
प्रेमियों के लिए, बस वही धाम था |
थाल मंदिर में तुम यूँ, सजाती मिलीं |
प्रेम-दीपक था, फिर क्यूँ जल ना सका ?
तुम स्वांति नक्षत्र........................
मैं चातक तुम्हारा........................
एक बगिया दिखी, जिसमे फूल खिले |
याद आए वो पल, कैसे हम-तुम मिले |
याद आए वो पल, कैसे हम-तुम मिले |
मन के उपवन में तुम, वो तितली बनी,
उड़ते ही फूल-सा, क्यूँ मचल ना सका ?
तुम स्वांति नक्षत्र........................
मैं चातक तुम्हारा........................
लड़ना मेरा मुझे, याद आया था जब |
दोषी खुद को ही मैंने, पाया था तब |
दोषी खुद को ही मैंने, पाया था तब |
यादों में तुम मेरी, आती-जाती रहीं |
मैं आँसू था फिर क्यूँ, छलक ना सका ?
तुम स्वांति नक्षत्र........................
मैं चातक तुम्हारा........................
मैंने सोचा बहुत, पर भुला कैसे दूँ ?
उन खतों को जमीं में, दबा कैसे दूँ ?
माफ करना मुझे, अब भी सांसों में हो |
मैं ही नादां था तुझको, समझ ना सका |
उन खतों को जमीं में, दबा कैसे दूँ ?
माफ करना मुझे, अब भी सांसों में हो |
मैं ही नादां था तुझको, समझ ना सका |
तुम स्वांति नक्षत्र........................
मैं चातक तुम्हारा........................
1 comment:
वाह.....
बहुत सुन्दर गीत.....
गुनगुनाने को जी चाहा.....
अनु
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