Monday, December 31, 2012

मैं कवि हूँ



कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि हूँ |

जो स्वर करुण रुदन में
,
बेबस होकर चीख रहे थे |
जो हँसते-हँसते चेहरों में भी,
रोते - रोते दीख रहे थे |
उन निहित अकेले भावों को,
उन संबंधों, अलगावों को,
शब्दों का घर देने वाली,
छवि हूँ, छवि हूँ, मैं छवि हूँ |
कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि हूँ |

जो सिक्कों को अनमोल बताये,
पर रुपयों का मोल न जाने |
जो रिश्तों की पहली कक्षा में,
पर माँ की हर आहट पहचाने |
उन नन्हे - नन्हे हाथों की,
उन कल आने वाले आघातों की,
कोमल उज्जवल सी दिखने वाली,
भवि हूँ, भवि हूँ, मैं भवि हूँ |
कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि हूँ |

जो आदम, आदम की परिभाषा से,
मानव तक पहुंचे हैं |
जो आदम, आदम की परिभाषा से,
दानव तक पहुंचे हैं |
उन आड़े-तिरछे चेहरों पर,
उन हर शतरंजी मोहरों पर,
आग उगलता, पल-पल जलता,
रवि हूँ, रवि हूँ, मैं रवि हूँ |
कवि हूँ, कवि हूँ, मैं कवि हूँ |

सादर : अनन्त भारद्वाज 
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