रातों-रातों में जाने क्यूँ, वो जगती रहती है
बातों-बातों में जाने क्यूँ, बच्चों सी लड़ती है
सुलझी-सी दिखने वाली, उलझी-सी पहेली है
हाँ वो मेरी सहेली है, कितनी अलबेली है |
होठों को जब खोले, टॉफी सी घुलती है
कान्हा की मुरली है, मीरा सी दिखती है
पूजा में सजने वाली, मिसरी की डेली है
हाँ वो मेरी सहेली है, कितनी अलबेली है |
कभी दोस्त बनाये तो, ये जग भी छोटा है
कभी रूठ जाये तो फिर, हर कोई खोटा है
सबको अपना कहती, फिर भी अकेली है
हाँ वो मेरी सहेली है, कितनी अलबेली है |
सुन्दर-सा रूप है उसका, रब ने तराशा है
शरमा के इठलाना ही उसकी परिभाषा है
वो तो किसी राजा की सुन्दर सी हवेली है
हाँ वो मेरी सहेली है, कितनी अलबेली है |
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