Thursday, September 12, 2013

एक ज़रा सी बात पे कल तुम बिगड़ गयीं

बहुत दिनों बाद एक गीत लिखा है, मस्ती भरा प्रेम का गीत...
मेरे अंदाज़ में सुनोगे.. तो वाकई मज़ा आ जायेगा :



एक ज़रा सी बात पे कल तुम बिगड़ गयीं
एक ज़रा सी बात पे आज मैं बिगड़ गया

चाहत तुम्हारी थी मुझे अपना बनाने की
मेरी भी थी ख्वाहिश तुम्हारे पास आने की
कितने हुए दिन यूँही हम मिल नहीं पाए
ऋतुएं भी चल दीं थी फूल खिल नहीं पाए
फिर तय किया दिन मिलने का मौसम बिगड़ गया
एक ज़रा सी बात पे कल तुम बिगड़ गयीं
एक ज़रा सी बात पे आज मैं बिगड़ गया

पढ़ने के उन दिनों हम प्यार में पड़े थे
दिल था हमारा साहित्य विज्ञान से भिड़े थे
उसके भी दिन थे पढ़ने के उसको पढ़ा दिया
मैं पास तो था बढ़िया बस टॉप न किया
फिर आकर पड़ोसियों ने कहा लड़का बिगड़ गया
एक ज़रा सी बात पे कल तुम बिगड़ गयीं
एक ज़रा सी बात पे आज मैं बिगड़ गया

वर्षों का ये प्रसंग था कुछ वर्ष ही रहा
अब तुम नहीं मिलोगे घरवालों ने ये कहा
हमने भी उनकी बात को दिल से नहीं लिया
किस्सा था जैसा चल रहा बस चलने ही दिया
पढाई करने पूरी थोड़ी बनाई दूरी सिस्टम बिगड़ गया
एक ज़रा सी बात पे कल तुम बिगड़ गयीं
एक ज़रा सी बात पे आज मैं बिगड़ गया

फिर सेट-साट होकर घर में ये राज खोला
हमको पसंद है लड़की फिर कोई कुछ न बोला
सुनके ये सब खुश थे लड़का और लड़की सैटल
शादी हुई हमारी विद ऑउट एनी बैटल
और जब हो ही गयी शादी तो अब क्या बिगड़ गया
एक ज़रा सी बात पे कल तुम बिगड़ गयीं
एक ज़रा सी बात पे आज मैं बिगड़ गया
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